Thursday 30 November 2017

नींद.. अभी देर है मेरे जागने मे..

अभी और लाशें बिछ जाने दो,
कुछ और धमाके हो जाने दो।
अभी देर है मेरे जागने मे
कुछ औऱ पटरियां उखड जाने दो।
अभी बाकी है प्रधुम्न कई स्वार्थ की बेदी पे चढ़ने को, 
बाकी है निर्भया कई, दिनदहाड़े रौंदे जाने को।
आश्रमों के गुफाओं में कुछ और इज़्ज़त लूट जाने दो।
अभी देर है मेरे जागने मे, 
कई और शहर उजड़ जाने दो।
कई फंदे खाली है अभी, कुछ और किसानों को लटक जाने दो।
सिंदूर बचा है, लाज़ बची है, उन सबको पहले उजड़ जाने दो।
अभी देर है मेरे जागने मे, 
कुछ और दंगे हो जाने दो।
बहुत तिरंगे है मेरे पास, कफ़न के जगह उढ़ाने को। 
थोड़े शेर जो बचे है उनको कुत्तों से कट जाने दो।
अभी देर है भारत को जागने मे, 
पहले राष्ट्र को श्मशान में बदल जाने दो।
मैं हूँ वो भारत जो महाभारत का इंतज़ार करता हूँ।
अभी कई द्रोपदी बची है, उनका चीरहरण हो जाने दो।
अभी देर है मेरे जागने मे, 
अभिमन्यु को चक्रव्यूह में अभी चीत्कार तो मचाने दो।
मेरे जागने तक, गंगा यमुना में रक्त प्रवाह हो जाने दो।
हिमालय की श्वेत चोटियां, रक्त रंजित हो जाने दो।
अभी देर है मेरे जागने मे, 
मेरी संस्कृति और ज्ञान को थोड़ा और लूट जाने दो।
वैसे मैं जाग के करूँगा भी क्या, सब तो मिट चूका होगा तब तक।
भारत होगा और भारतीयता, इंसान होंगे इंसानियत।
इसलिए कहता हूँ की अभी बाकी है नींद मेरी।
कुछ देर तो और मुझे सो जाने दो।।
- शशिकान्त शर्मा "वेद"

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